खो-खो: एक प्राचीन भारतीय खेल की महत्वपूर्ण परिचय
भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा, खो-खो एक प्राचीन खेल है जो दौड़ने और टैग करने के खेल के रूप में खेला जाता है। इसका नाम संस्कृत शब्द “खो” से आया है, जिसका अर्थ होता है “गोडन” या “चुपचाप आना-जाना”। खो-खो का इतिहास महाभारत के समय से ही शुरू होता है और यह खेल भारतीय सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
खेल के नियम और तकनीकें:

खो-खो के नियम सामान्यत: दो टीमों में खेले जाते हैं, प्रत्येक टीम में 9 खिलाड़ियाँ होती हैं। खेल की शुरुआत में दो खिलाड़ियाँ खेल खोलती हैं, जिन्हें ‘चास’ कहा जाता है, और उन्हें चास की कोशिश होती है कि वे दूसरी ओर सुरक्षित रूप से लौट आएं।
खो-खो पॉइंट प्राप्ति के तरीके:
टैग किये गए खिलाड़ियों की संख्या: जब एक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी को टैग करता है, तो उसकी टीम को एक पॉइंट प्राप्त होता है।
सुरक्षित दौड़ने वाले खिलाड़ियों की संख्या: खो-खो में चास का मतलब होता है कि खिलाड़ी सुरक्षित रूप से दूसरी ओर पहुँच जाता है। जितने अधिक खिलाड़ियाँ सुरक्षित रूप से लौटते हैं, उतने पॉइंट प्राप्त होते हैं।
विरोधी खिलाड़ियों की संख्या: जब विरोधी खिलाड़ी खेल खोलते हैं और चास की ओर दौड़ते हैं, तो उनकी टीम को एक पॉइंट प्राप्त होता है।
खो-खो के नियम:

खो-खो एक प्राचीन भारतीय खेल है जो दौड़ने और टैग करने के खेल के रूप में खेला जाता है। यह खेल भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसका इतिहास महाभारत के समय से ही शुरू होता है। इस लेख में, हम खो-खो के नियमों के विस्तृत विवरण को देखेंगे।
- खेल के मैदान और संरचना: खो-खो का मैदान एक बड़ा रंगीन खेलखिलौना होता है, जिसमें खिलाड़ियाँ दौड़ने के लिए स्थित होती हैं। मैदान का आकार विभिन्न आयामों में हो सकता है, लेकिन सामान्यत: 29 मीटर की लम्बाई और 16 मीटर की चौड़ाई होती है।
- टीमों की संख्या और सदस्य: खो-खो में दो टीमें होती हैं, प्रत्येक टीम में 9 खिलाड़ियाँ होती हैं। टीम का प्रमुख “कप्टन” कहलाता है और उसके द्वारा नियंत्रित होता है।
- खेल की शुरुआत और विवादों का प्रबंधन: खो-खो की शुरुआत तब होती है जब एक टीम के खिलाड़ियाँ अपने मैदान की और दौड़ते हैं। उन्हें आते समय ही उनका नाम बुलाया जाता है और उन्हें “खो” कहने का अवसर मिलता है।
- खो और बच्चे की शरारतों का प्रबंधन: खेल खेलते समय, खिलाड़ियों को शरारतों का पूरी तरह से पाबंद रहना चाहिए। वे सिर्फ अपनी मात्रिता के लिए बच्चों की तरह चलते हैं और शरारत नहीं करते हैं।
- खो के नियम: एक खिलाड़ी जो खो बोलता है, उसका उद्देश्य होता है कि वह उस खिलाड़ी को टैग करे जिसने उसे खो बोला है। यदि वह सफलतापूर्वक उस खिलाड़ी को टैग कर लेता है, तो उसकी टीम को एक पॉइंट प्राप्त होता है।
- सुरक्षित दौड़ने के नियम: खेल के मध्य में, टीम के खिलाड़ियों को सुरक्षित रूप से अपनी ओर दौड़ने की कोशिश करनी होती है। खो-खो में चास का मतलब होता है कि खिलाड़ी सुरक्षित रूप से दूसरी ओर पहुँच जाता है।
- विरोधी टीम के खिलाड़ियों का पूर्णिंग: विरोधी टीम के खिलाड़ी खेल के मध्य में खेल खोलते हैं और चास की ओर दौड़ते हैं। यह उनकी टीम को एक पॉइंट प्राप्त करने का अवसर देता है।
- पूर्ण खेल और विजय: जब खेल की दोनों टीमें अपने स्थानों को बदलती हैं, तो खेल का पूर्णिंग होता है। पूर्णिंग के बाद, जो टीम अधिक खिलाड़ियों को बाहर करती है, वह टीम विजयी होती है और उसकी टीम को पॉइंट मिलते हैं।
- इस प्रकार, खो-खो एक शानदार खेल है जिसमें दौड़ने और टैग करने के रूप में खेला जाता है और यह समृद्ध भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके नियम न केवल खेल के मजेदार पहलु को प्रकट करते हैं, बल्कि शारीरिक तंत्र को मजबूत करने और टीम काम का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है।
खो-खो के खेल की प्रतिष्ठा और पॉपुलैरिटी कम होने के कारण

- माध्यम की कमी: विभिन्न खेलों और मनोरंजन के विकल्पों की विस्तारित स्केल में, खो-खो अधिक प्रसिद्ध नहीं है, और इसके बारे में सामान्य जनता को कम जानकारी हो सकती है।
- विभिन्न खेलों की प्रतिष्ठा: वर्तमान समय में, क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन जैसे अन्य खेलों को अधिक मीडिया प्रसारण मिलता है और उनका अधिक मानचित्र में स्थान है।
- विशेष रूप की आवश्यकता: खो-खो खेल के लिए विशेषकर डिजाइन किए गए मैदान की आवश्यकता होती है, जिसमें खिलाड़ियाँ आसानी से दौड़ सकें। ऐसे मैदानों की कमी बड़े नगरों और शहरों में हो सकती है।
- विभिन्न खेलों के साथ मुकाबला: कई लोग खो-खो को अन्य खेलों के साथ मुकाबले में कम रोमांचक मानते हैं और इसलिए उन्हें खेलने में कम रुचि हो सकती है।
- खेल की सामाजिक प्रतिष्ठा: खो-खो को कई बार निचली सामाजिक प्रतिष्ठा वाले खेल के रूप में माना जाता है, जिससे यह उन्हें प्राथमिकता नहीं दिलाता है।
- तकनीक और फिजिकल तयारी की आवश्यकता: खो-खो में अच्छी तकनीक और शारीरिक तयारी की आवश्यकता होती है, जिसके चलते कुछ लोग इसे प्रभावित तरीके से नहीं खेल पाते हैं।
- विभिन्न प्रोत्साहनों की कमी: खो-खो को प्रोत्साहित करने के लिए उच्चतम स्तर के प्रोत्साहन और प्रतियोगिताओं की कमी हो सकती है, जो खिलाड़ियों को इसे खेलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
- विविधता की कमी: खो-खो को अन्य खेलों के साथ मुकाबले में विविधता की कमी हो सकती है, जो लोगों की रुचि को आकर्षित करने में मदद करती है।
खेलों का महत्वपूर्ण स्थान:
भारतीय खेलों के रूपों में, खो-खो भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह न सिर्फ एक मनोरंजनात्मक खेल है, बल्कि शारीरिक तंत्र को मजबूत करने और टीम काम का भी एक अद्वितीय तरीका है।
खो-खो खेल का इतिहास गहरे संस्कृतिक और खेलीय महत्व के साथ जुड़ा होता है। यह खेल सामाजिक मिलनसर क्षमताओं को बढ़ावा देता है, मानसिक तंत्र को मजबूत करता है और दौड़ने की क्षमता को विकसित करता है। खो-खो न केवल एक खेल है, बल्कि यह एक प्राचीन और गर्मजोशी भरा हिस्सा है जो आज भी हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बना हुआ है।
इन कारणों के संयोजन से खो-खो का प्रतिष्ठान्ता और पॉपुलैरिटी कम हो गई है, लेकिन कुछ जगहों पर यह अभी भी खेला जाता है और खेल की महत्वपूर्णता को बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है। अगर आप को यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो शेयर जरूर करे ।